ख़बर न हुई
ख़बर न हुई
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ख़बर ना हुई हमें, वो कब बेवफ़ाई कर गए
तोड़कर दिल मोहब्बत की रुसवाई कर गए
कुछ तो कहते आखिर क्या है हमारा कुसूर
क्यों राहे बदल, ज़िन्दगी में तन्हाई कर गए
कोई कैदखाना तो नहीं था यह दिल हमारा
जो इस क़दर वो इस दिल से रिहाई कर गए
जाना ही था जब तो आए क्यों ज़िन्दगी में
और जाते-जाते भी न कोई सुनवाई कर गए
निभाई वफ़ा और कदम कदम पर साथ चले
फिर क्यों मोहब्बत की ऐसी, लड़ाई कर गए
आज भी इंतजार है उसका ये जानने के लिए
वो मोहब्बत में क्यों ऐसी बेपरवाही कर गए।