सखी! सावन आ गया
सखी! सावन आ गया
कुहू-कुहू जब कोयल करने लगे
मन कली पर भ्रमर मंडराने लगे
क्यारी फूलों की सुंदर दिखने लगे
सजनी प्रिय के गीत जब गाने लगे
तब समझना सखी! सावन आ गया
सूखी वसुधा का आंगन महका गया।
पेड़-ठूंठों पे बहारें छाने लगे
झरने नदियां भी कल कल करने लगे
राग मल्हार मन को जब भाने लगे
तब समझना सखी! सावन आ गया
खेत खलिहान कूचों को सजा गया।
अंधेरी रात में तारे चमकने लगे
हिम कणों से पर्वत ढकने लगे
गर्म रातों में सर्दी जब लगने लगे
तब समझना सखी! सावन आ गया
काली अमावस को "पूर्णिमा" बना गया।