गजल(दोस्त)
गजल(दोस्त)
हमने किसी को दोस्त बना कर क्या बुरा किया,
किसी के दिल को आजमा कर क्या बुरा किया।
अपने ख्यालों में किसी को लाकर क्या बुरा किया,
अब चाहे लाख रूठे जमाना भी,
अपनी चाहत को आजमाया तो क्या बुरा किया।
माना की नहीं ली सलाह किसी की दिल ने
पहचानी दिल की राह तो क्या बुरा किया।
था गमों का बोझ इतना की कोई उठा नहीं पाया,
गम को दूर करने का तरीका आजमाया तो क्या बुरा किया।
नहीं रखी चमक दमक चेहरे
पर भी, मेरी सादगी ने उसको लुभाया तो क्या बुरा किया।
माना की उलझनें कम न हो पाईं,
एक दूसरे के गम को सह कर भी निभाया तो क्या बुरा किया।
माना की वह छोड़कर चले गए,
दिल गैरों से फिर लगाया तो क्या बुरा किया।
दगाबाज हो गई है दुनिया आजकल सुदर्शन एक दगाबाज को
आजमाया तो क्या बुरा किया।