तुम ऐसी तो नहीं थी
तुम ऐसी तो नहीं थी


जब हम तुमसे मिले थे
हमारी दिल की बगिया में
फूल तुम्हारे नाम के खिले थे
तब तुम ऐसी तो नहीं थी।
जब हमारी आँखों के कैमरे में
तस्वीर तुम्हारी उतर आती थी
हमारी रातों की नींद चुराती थी
तब तुम ऐसी तो नहीं थी।
तुम्हारे गेसुओं से उठती सुरभित महक
तुम्हारी नाज़नीन शोख अदाएं
मन मेरा मोह लेती थी
रात के अँधकार में मेरे तन-बदन से
लिपट-लिपट कर सोती थी
तब तुम ऐसी तो नहीं थी।
अपनी पलकों पर ठहरे मेरे दिल को
तुम नयनों के गहरे सागर में अभिराम करवाती थी
मेरे रूह-बदन के एक-एक तार को
झंकृत कर जाती थी
तब तुम ऐसी तो नहीं थी।
जब तुम हमसे मिले थे
हम हुस्न का शबाब थे
तुम्हारा मधुर ख्वाब थे।
मधुर ख्वाब हकीकत बन गया
मीठा कल आज में ठन गया।
जिस दिन ख्वाब और हकीकत में
समझ आ जाएगा फर्क
उस दिन बड़ा ही स्वादिष्ट लगेगा
सुरमई जिंदगी का अर्क।