तुझे इल्म नहीं मेरी मोहब्बत का
तुझे इल्म नहीं मेरी मोहब्बत का
तुम्हारी और मेरी मोहब्बत को,
खूबसूरत शब्दों में मैंने पिरोया है,
तुम्हारा साथ हो न हो, फिर भी,
हर पल शब्दों में अपने संजोया है।
प्रेम मात्र पाना नहीं होता,
ये तो दिल में पलता एक एहसास है,
तुम दूर कहाँ हो मुझसे,
शब्दों की अभिव्यक्ति में हरदम साथ है।
कभी मैं नदी के तट पर,
तुम्हारे साथ आलिंगनबद्ध होती हूँ,
तो कभी बासंती बयार में मदमस्त होती हूँ,
कभी सागर किनारे ले हाथ में तेरा हाथ,
कोई गीत गुनगुनाती हूँ।
मेरी कलम सिर्फ और सिर्फ,
तेरा प्यार, शब्दों के हार में पिरोती है,
रोज चार छः कोरे कागज,
तेरे प्यार से रंगीन करती है।
सुधि बुधि खो तुमको जब मैं लिखती हूँ,
चाहत की खुशबू में सराबोर हो जाती हूँ,
कुछ अधूरा नहीं, सब पूरा लगता है,
तुम्हारी अनकही बातों को शब्द जब मैं देती हूँ।
दिल में, तेरे प्यार का तराना बजता है,
कागज कलम में हर पल उलझा रहता है,
शब्दों के ताने बाने से, ये दिल तो बस,
तेरे मेरे प्रेम की अमर इबादत लिखता है।
दिव्य निराला गहरा ढाई आखर प्रेम का,
तुझे इल्म नहीं मेरी मोहब्बत का,
बिन तुम्हारे कभी अधूरा न पाया खुद को,
शब्दों में नित दिन ढाला हमारे प्रेम को।