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Prashant Kumar Jha

Children

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Prashant Kumar Jha

Children

ट्रांसगर्ल की ममता

ट्रांसगर्ल की ममता

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रब का है यह अनोखा खेल, 

अनंत ममता भरी है मुझमें, 

फिर क्यों माँ नहीं बन सकती मैं, 

वो कोख क्यों नहीं है मुझमें, 

काश नौ महीने तुझे कोख में रखती, 

फिर मैं भी माँ बन जाती, 


तुझे मैं अपने सीने से लगाती, 

गोद में तुझे लोरी सुनाती, 

काश मैं भी तुझे, 

अपनी दूध पिला पाती, 

जब तुम रूठते मुझसे, 

तो मैं तुझे मना पाती, 

काश मैं भी, 

माँ बन पाती, 


ममता की गंगा है मुझमें, 

फिर तरसती हूंँ क्यों, 

माँ शब्द सुनने के लिए मैं, 

मांगती हूँ हर पल, 

मंदिर में रो-रो कर, 

माँ बनने का सुख, 

काश दे देते रब, 


वो छोटे बच्चे का नखरा, 

मुझे हर पल भाता है, 

देखकर उसे, 

मेरी ममता जाग जाता है, 

काश मैं उसे पास रख पाती, 

माँ बनने का हक मैं जता पाती, 

वो गुस्से में जब दांत काट लेता है, 


देखकर ये सब, 

और भी प्यार बढ़ जाता है, 

उसकी सुंदर सा मुस्कान, 

सपनों में याद आता है, 

काश यह सपना सच हो जाता, 


मेरा बच्चा मुझे माँ बुलाता, 

यह सब सोचकर, 

आँखें भर आती है, 

हकीकत मुझे, 

हर पल रुलाती है, 

काश ये समाज मुझे जान पाता, 

मेरी ममता को थोड़ा समझ पाता।


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