दिव्या
दिव्या
कोमल सा है मन मेरा,
कांच समान है स्वप्न मेरा,
नयन में आँसू है मेरी,
लो मैं किस्मत से हारी।
हृदय में एक अरमान है,
दिव्या की पहचान है,
सुनो ना मुझे भी कोई,
अकेली मैं कितना रोयी।
ईश्वर की बनाई एक शख्सियत हूँ मैं,
लेकिन रखती एक अहमियत हूँ मैं,
अपना लो अब अस्तित्व मेरी,
जीवन से तो हार चुकी हूँ,
मौत ही भेंट कर दो कोई।
जीना चाहती हूँ मैं भी,
साथ अपने परिवार के,
अब खुल जाए राज मेरी,
पूरे इस संसार में।