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Prashant Kumar Jha

Inspirational

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Prashant Kumar Jha

Inspirational

सोनिया आज बन चुकी हूँ

सोनिया आज बन चुकी हूँ

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आज खुद को पा चुकी हूँ, 

स्त्रीत्व में समा चुकी हूँ, 

तलाश थी बचपन से जिसकी, 

वो 'सोनिया' आज बन चुकी हूँ, 


आसान नहीं था, 

ये सफर भी, 

काँटो से भरा रहा ये जिंदगी, 

अपनों की खुशियों के लिए, 

सालों तक यूँ रोती रही, 


आज खुद का परछाई देखती हूँ, 

'सोनिया' से हँसकर बात करती हूँ, 

अपना अस्तित्व पाकर, 

खुद को आज संपूर्ण मानती हूँ, 

याद है आज भी, 

कैसे कभी छुप-छुप कर रोती थी, 


एक साड़ी पहनने के लिए, 

कैसे मैं तरसती रहती थी, 

वो दिन भी अजूबा था, 

अपनों ने जब मेरा हक छीना था, 

समाज की बातों में आकर, 


'सोनिया' का किरदार अधूरा था, 

आज खुद से बातें करती हूँ, 

मन ही मन मुस्कुरा रही हूँ, 

वो दिन भूली नहीं हूंँ, 

बस खुद को पा चुकी हूँ, 

'सोनिया' में समा चुकी हूँ।


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