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टंगे सपने

टंगे सपने

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इस कमरे में

बीच अँधेरे

सडक किनारे

छोटी सी खिड़की है।


उस खिड़की पर कांच जड़ा है

आगे टंगा है एक पुराना मैला सा परदा

जिसके लाख रोकने पर भी

आ रही है

थोड़ी रौशनी।


उजाले का भ्रम जगाने

उस बित्ता भर उजाले के आगे

हैं दो जोड़ी आँखें

कमरे में फैले अँधेरे में

उस उजाले को पहचानने की

कोशिश में लीन।


कमरे की दीवारों पर

टंगे हैं इनके सपने

जो पुराने हो धुंधला गए हैं

बेवक्ती और बे मायने हो गए हैं।


एक सपना टंगा है सामने की दीवार पर

गाउन पहने डिग्री लेती बेटी

जो आजकल पुणे में है

किसी कुलीग के साथ "लिव इन में है

बरसों से मिली नहीं है।


कोई उसका फोन नहीं है

पिछली दीवार पर है नीटू

रैकेट थामे हंसमुख चेहरा

बसा हुआ यू एस ए में जा

वहीं किसी गोरी छोरी से ब्याह किये हैं।


बूढी आँखें ढूँढा करती हैं किरणों को

छूने की कोशिश करते हैं

 सपनों के बदरंगी रंग को

हुआ आज नज़रों से ओझल

खाली कोना ढूंढ रहे हैं। 


नजर की सीमाओं से

जीने की चाहत में लेकिन

सपनें नए उगा करते हैं

कोंपल कोई रोज फूटती

फूल कई महका करते हैं।


खाली कोना ढूंढ रहे हैं

जहाँ रौशनी थोड़ी बाकी

सजे टंगे सपना फिर कोई

बन्दनवार सजे इस घर में

थोड़ी चहलपहल हो जाए।


बूढ़ी आँखें देख रहीं हैं

सपना ऐसा

छांह सींचने आये कोई

कोई किरण सुनहरी आये

तन मन सब उजला हो जाए।


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