STORYMIRROR

Sneh Goswami

Abstract

3  

Sneh Goswami

Abstract

दिन का उगना

दिन का उगना

1 min
290


बादलों का नन्हा सा छौना

रंगों में डूबा

ज़रा सा चला

और चल दिया।


नयी दिशा की ओर

भरता हुआ कुलांचें

झाड़ियों ने उठा दीं अपनी

वत्सल बाहें।


खुशियों की तरह

फैलने लगे रंग

दिन उगने लगा धीरे धीरे।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract