STORYMIRROR

sneh goswami

Abstract

3  

sneh goswami

Abstract

प्रतिदान

प्रतिदान

1 min
416

सूरज

तुम जब भी आते हो

आग उगलते आते हो

लाल सुर्ख चेहरा लिए

डर कर भीतर छिप

जाती हूँ मैं

तुम ढूढ़ते हो दिन भर

और थक हार कर

लौट जाते हो

अगले दिन फिर से

आग उगलते हुए

लौट आने के लिए


चाँद फिर आता है

अपने प्रेम का

इज़हार लिए

घुटने के बल बैठ

चाँदनी का आँचल

ओढ़ा कर

माँगता है प्रेम

का प्रतिदान

पर मेरे निर्णय

लेने से पहले ही

ग़ायब हो लीन हो जाता है

घने अंधकार में


मुझे सूरज और चाँद

दोनों की दरकार नहीं

रास्ता देख रही हूँ

उसका

जो समझे मेरा मन

मेरी सुने

बेशक गुलफाम न हो

राजा भी नहीं

गौतम बुद्ध तो

बिल्कुल नहीं

सिर्फ प्रेमी हो मेरा

सीधा सादा प्रेमी


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract