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Sneh Goswami

Abstract

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Sneh Goswami

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स्वागत

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सोचती हूँ

कहाँ से शुरु करूँ

क्या वहां से ?

जब मैंने अधमुंदी आँखों से

इंद्रधनुषी सपनों का

जाल बुनना

शुरू किया था।


या वहां से,

जब मेरी ही

भावुक कमजोरियों ने

मुझ पर विजय

प्राप्त की थी।


और मैं अपनी

"मैं" के सामने

हारी हुई पहुंची थी ?


नहीं, नहीं

यह बहुत बुरा है

यथार्थ बहुत दुःख देता है

मैं, मैं

मैं यह ग्लानि नहीं पी सकती।


पीया होगा शिव ने जहर

मगर कंठ से नीचे तो नहीं उतारा न

वापस चलो

मैं यादों के किसी भी

पत्र विहीन जंगल में

नहीं घूम सकती।


आशा बहुत बलवती होती है

मैं आशा की इन्हीं

घुमावदार सीढ़ियों के सहारे

तुम तक, तुम तक मेरी आकांक्षाओं

अवश्य पहुँचूँगी, 

अवश्य यह मेरा वादा है।


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