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sneh goswami

Abstract

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sneh goswami

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कान्हा सुनते हो न

कान्हा सुनते हो न

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सुना है

कान्हा

तू परमेश्वर है

तूने खुद माना

गीता में

अर्जुन के सामने

कि तू सृष्टा है

सारी दुनिया


दुनिया क्या पूरा ब्रह्मांड तूने सिरजा है

सारा भूगोल खगोल तुझमे समाया है

तूने तो यह भी कहा था 

कान्हा

कि इस दुनिया में जो सुंदर है और जो असुन्दर

सब तुम हो


साथ ही यह भी

कि बिना मेरी मर्जी के एक पत्ता भी नहीं हिलता

करता भी मैं

और भरता भी मैं

तो एक जवाब दो कान्हा

ये जो धरती पर युगों युगों से असुर घूम रहे हैं

इन्हें क्यों बनाया तुमने


क्यों तुम्हारी अपनी बहन भी नहीं है

सुरक्षित अपने ही मामा से

क्यों जेठ और देवर करते हैं

अपमानित तुम्हारी कृष्णा को

सड़कों पर वह नहीं सुरक्षित

घर में भी

वह पीटी जाती


या वह सब वापिस लो तुम

या फिर दुनिया नई बसाओ

जिसमे सब हो

सब में तुम हो

कोई रावण कंस न हो

दुर्योधन फिर कहीं न जन्में

क्या तुम ऐसा कर पाओगे

या फिर केवल

आश्वासन हैं


तो फिर गीता नहीं चाहिए

जिसकी सारे कसमें खाते

झूठों का संसार सजाते

कान्हा 

तो फिर कहना छोड़ो

मैं हूँ सृष्टा , मैं संहर्ता

पत्ते सारे हिल हिल जाते

ऐसा ही तूफ़ान मचा है


हत्या का बाज़ार सजा है

कान्हा 

गीता झूठी पड़ गई 

रास प्रीत की कहीं खो गयी 

कान्हा एक नया वृंदावन सिरजो

या फिर कोई राग सुनाओ

फिर से कोई बंशी छेड़ो


या फिर सृष्टा का पद छोड़ों

हम कोई संसार रचेंगे

जिसमें प्रेम प्रीत का शासन

मानवता फिर जीवित होगी

कान्हा सुनते हो न।


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