STORYMIRROR

Sneh Goswami

Abstract Drama Inspirational

3  

Sneh Goswami

Abstract Drama Inspirational

दीपक

दीपक

1 min
443


नया दीपक

सांध्य बेला

इस धरा पर

हर शहर में,

एक युवती पर्स थामें थकी हारी

लौटी है दफ्तर से,

सांस भर ठंडी

जरा रुक ताला खोलती है,

घुप अँधेरा पसरा है भीतर बाहरI


मशीन की मानिंद अनायास 

अभ्यास से खटका दबा देती हैं उँगलियाँ,

चारों और झिलमिल बल्ब की है,

उजाला कैद है व्यापार में अब,

उधारी के दिए हम बोलते हैं,

जो बिना बाती

बिना हैं भावना के

बटनों से चला करते,

नहीं मन को सुकून देते,

जला करते हैं

कि जलना नियति है,

जले बेशक बनावट से

उधारी से,

प्लास्टिक के दीये की भाँति,

अब अक्सर फ्यूज हो जाता है दिलI


किसी का भी किसी का भी

कोई बाती नहीं बाँटता,

जो हो तेल में डूबी

जिसकी रोशनी में मन,

नई राहें चुना करता,

नये सपने बुना करता,

बल्ब से फ्यूज होते दिल अक्सर,

यहाँ की नियति है,

यहाँ दीपक नहीं जलते बल्ब जलते ही रहते हैंI


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract