ठोकर दर ठोकर
ठोकर दर ठोकर
पैरों की ठोकरें , वरदान सी,
सौभाग्य पैरों में निहित।
फुटबॉल सा उछलता, गिरता,
पिटता, मुस्कुराता दर्द में।
ख़ुद ही लिख डाला ,
हाथ की लकीरों को।
रक्तरंजित काया की ,मरहम पट्टी किस लिए?
मेरी ही आरज़ू ,मिट जाने की।
तड़प तड़प कर, मर जाने की
दर दर ठोकर खाने की।
समझाया था , उसने भी बार बार,
कई बार।
फरेब है, परहेज कर।
मत पी ज़हर।
जी भर पिया , हलाहल ,
रोक ले मुझे , नहीं ऐसी ताकत ज़माने की।