ठंड
ठंड
पूरी कायनात
मुर्दाघर की मानिंद
सर्द हो गई है
ज़िंदा होने के अहसास को
जिलाए रखने के लिए
जानलेवा मशक्कतें
करनी पड़ रही हैं
अच्छे दिनों का
ख़ूबसूरत ख़्वाब दिखाकर
जो ग़ायब हुआ सूरज
दुबारा लौटा ही नहीं
धुंध इतनी बढ़ गई
कि अपनी सूरत भी
बेगानी लगने लगी है
कुछ भी तो
साफ़ नज़र नहीं आता
न सच
न झूठ
सड़कों पर
गाड़ियों की हेडलाइटें
मुर्दा आँखों सी मुँद गई हैं
जिनके पास साधन हैं
उनके लिए ठंड मज़ा है
जो अलाव की उम्मीद में
चिताओं पर हाथ सेंक रहे
उनके लिए ज़िंदगी भी
एक सज़ा है
जो काट रहे हैं
बिना यह जाने
कि उनका गुनाह क्या है
कहते हैं कि
ठंड एक मौसम है
जिसे एक रोज़
गुज़र ही जाना है
पर यह
एक रोज़
खैराती कंबलों के
सियाह पुल के नीचे से
ख़ाली पेट कब गुज़रेगा
कोई नहीं जानता।।