ठगी हुई औरत
ठगी हुई औरत
तुम मर्दों की बस्ती में
औरत रह जाती हैं
अक्सर ठगी,
जब बनाती है
वो स्वादिष्ट पकवान
और परोसती हैं
बहुत उम्मीदें लिए
कि तुम कहोगे,
"क्या तुमने अपना सारा प्यार उड़ेला है??"
या अन्य तारीफें,
किन्तु तुम नुख्स निकालते हो।
वो औरत धोती है
कपड़े तुम्हारे
जिनमें कभी किसी और की गंध
से उसका सामना होता है।
फिर भी वही औरत
मिटाती है दाग
और सोचती है,
"ऐसी कोई बात नहीं।"
औरत सजती है
तुम्हारे लिए
लेकिन तुम्हें नहीं कोई कद्र,
फिर जब कोई उससे हँसकर
करता है बातें
या उसकी सुंदरता पर
पढ़ता है क़सीदे,
तो तुम्हें बुरा लगता है
क्योंकि वो तुम्हारी है।
किन्तु उसी औरत के सामने
जब तुम किसी दूसरी औरत के साथ
करते हो फ़्लर्ट,
तो इसे आम समझ
वो चुप रहती है।
तुम नहीं देख पाते उसका समर्पण,
तुम नहीं टोहते उसका मन।
चंचल हो कर भी
वो तुम्हारी रहना चाहती है।
तुम्हारे बच्चों को
बड़ा करते हुए
वो अपना नाम खोजती है,
जो सालों पहले
तुमने बदल दिया था।
खुश रहती है हर हाल में
क्योंकि उसे बस तुम चाहिए।
फिर भी वो ठगी रह जाती है
जब तुम उसे छोड़ जाते हो।
या उस पर उँगली उठाते हो।
या उसके अरमानों को चकनाचूर कर,
तुम स्वार्थी हो जाते हो।
तुम ठग जाते हो एक औरत को।