STORYMIRROR

Varsha Srivastava

Others

3  

Varsha Srivastava

Others

जल, प्रकृति और पर्यावरण

जल, प्रकृति और पर्यावरण

1 min
232

तपती भूमि झूम उठती है

जल जो कुछ बूंदें गिराता है।

खुश होकर बनती धरा उपजाऊ

किसान अन्‍न उगाता है।

अन्न से बनते हैं तंदरूस्‍त

पशु-पक्षी व सारे जीव।


जीवों को संतुष्‍ट देख

पर्यावरण संतुलित हो जाता है।

शुरूआत जल से ही तो होती है

धरा बिन जल के बंजर होती है।

ज्‍यों लगा दिये कुछ पेड़ हमने

प्रकृति खुश होती है।


देखो! कैसे सूना पड़ा है

पानी का मटका।

तड़प रहे हम, तड़प रहे तुम

बीज भूमि में ही हैं अटका।

अब तो बचा लो थोड़ा पानी

भूमि को भी नहाने दो।

प्रकृति रहेगी हरी-भरी

पर्यावरण को मुस्‍कुराने दो।

पर्यावरण को मुस्‍कुराने दो।



Rate this content
Log in