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Varsha Srivastava

Others

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Varsha Srivastava

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सूखी रोटी

सूखी रोटी

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मेरे हिस्से आयी

सूखी रोटियाँ,

प्रेम में पड़ कर

सीखा केवल

जिरह करना।


सारी इच्छाएँ उसकी

मैं उनका साधन,

सारे लोग उसके

मैं एक अनाथिन,

मैंने जिया जैसे

रोज मरना।


कूड़े से जो भी

मिल पाया, मैंने लिया,

सारे सन्तापों का

मुँह बन्द किया,

मैंने सीखा

कुछ ना करना।


उन सूखी रोटियों के ख़ातिर

मैंने मोल ली लड़ाई

चील-कौवों से,

मैंने कुत्तों का छीना

निवाला

और ठूंस लिया

बिना जल के

अपनी भूख के लिए,

क्योंकि मैंने सीखा

अतृप्ति में संतोष करना।


बैर किया स्वयं से,

नोच कर अपनी ही खाल

मैंने सीखा

श्रृंगार करना। 


प्रेम में पड़ कर

मैंने जाना

कैसा होता है

पागल बनना।



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