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Varsha Srivastava

Abstract

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Varsha Srivastava

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परित्यक्ता

परित्यक्ता

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स्त्री

जो होती हैं

परित्यक्ता,

बन जाती हैं

चट्टान,

जिस पर प्रभाव

नहीं पड़ता 

तानों का।


तोड़ने को उसको

हथौड़ों से

किया जाता हैं

प्रहार।


किन्तु वो बनने लगती हैं

ज्वालामुखी

और धधकती हैं

भीतर से,

यदि फूट पड़े तो

प्रलय ला सकती हैं।


परित्यक्ता को

प्रणय नहीं

स्वयं से,

उसे बनना हैं काँटो सा

इतना धारदार,

छूने वाले को

चीड़ कर रख डाले।


स्वीकृति नहीं

चाहिए

अपने आपको

'आप' रहने की,

स्त्री अडिग हो जाती है

परित्यक्ता हो कर।


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