आज भी।
आज भी।
मैंने सालों से नहीं पढ़ी
उसकी आँखें,
ना देखा उनमें
किसी का भी अक्स
तो कैसे पता होता है
उसके अकेलेपन का रहस्य
आज भी??
ना जाने कब से
मैंने सुनी नहीं उसकी बातें,
फिर भी उसकी खामोशी में
दुबकी सदाओं को सुनती हूँ
आज भी।
उसके खोखले से मन को
टटोलती हूँ
जिनमें भावनाओं का
सैलाब उमड़ता है,
और बिन जाने ही
जानती हूँ उसकी आरजू
जिनमें तलाश हैं
आज भी।
बहुत वर्ष बीत चुके हैं
मरे हुए उसमें उसको
पर हृदय के
एक हिस्से में
वो धड़कती हैं
आज भी।
मैं छोड़ जाती हूँ
उसे उसकी दुनिया में,
पर उसने ना छोड़ा मुझे
आज भी।
मैं दबे पाँव आती हूँ
उसके सर के नीचे
धँसे हुए ख़्वाब देखने,
और उनमें छुपे डर को भी।
वो नहीं जानता
कि कुछ नहीं मेरे लिए
उसके आगे।
वो गुम है अपने ग़म में
मैं गुम हूँ
उसके ग़म में
और कट रही ज़िन्दगी
आज भी।।