टांग खींचने वाले
टांग खींचने वाले
खीचने वालों को खींचने दो, यूँही टांग
तुम चलते रहो बेधड़क, यूँही बेलगाम
सुना है, दुनिया मे वही कमाते है, नाम
जो काम करते है, बहुधा ही ऊंटपटांग
जो जलते, उन्हें जलाता रह आठोयाम
दीप आगे न चले, तम तमाम इंतजाम
उनके साये से भी तू कोसों दूर रह, राम
जो टांग खींचने का नित करते है, काम
उनकी बहुत ही होती है, काली जुबान
जो पर बुराई करने का करते, नित काम
कभी-कभी राबड़ी के निकल आते, दांत
इनसे थोड़ रुकते आशावान के जहान
पर पर निंदक से होते, थोड़े निराशवान
टांग खींचनेवाले शूल चुभते हुए, जहान
तू इन शूलों में बनना जरूर फूल, गुलाब
उन्हें परनिंदा बगैर न पचता, अन्न महान
स्व-नही, दूजो की कमियां देखते, इंसान
वही यहां पर खींचते रहते है, नित टांग
तू साखी कभी न दे, उन लोगों पर ध्यान
फूल खिलने से पहले ही पाता, इल्ज़ाम
तू बहरा होकर कर्म करता रह, सावधान
गर पाना है, तुझे अपना लक्ष्य आसमान
चलता जा, न रुक पायेगा अपना मुक़ाम
त्याग दे, नकारात्मक ऊर्जा लोग बेईमान
तू साखी बस अपने लक्ष्य पर तीर संधान
पत्थर को भेद देगा, साखी तेरा यह बाण
तू होना न कभी जहां में खुद से परेशान
अपने भीतर का जिंदा रखना, तू इंसान
जिन्हे खुद पर होता है, अटूट विश्वास
उन लबों पर रहती है, नित ही मुस्कान
बुराई करनेवालों को समझ, प्रेरणादान
निश्चित, बाधाओं से पायेगा, नई पहचान।