तस्वीर
तस्वीर
तू भी अजनबी सा लगने लगा है
दीखता था पहले हर तरफ ,
रहता था पहले मेरे रूबरू , अब
किसी किसी कोने में सजने लगा है।
पहले सीने से लगकर रखते थे
होठों से भाप उड़ते ही दीखते थे
कभी खिड़की पर आप उभरते थे ,
आज तेरे तसव्वुर भी कोने पड़ा है।
नींद आ जाती है बिना देखे तुम्हे
पहचान नहीं पाते बिना आंखें पोंछे तुम्हे
सपनो में भी तेरा तकिया कोने पड़ा है
पर जब भी देखि तेरी तस्वीर ,
ना चाहकर भी मुझे खोना पड़ा है।
तनहा शायर हूँ !