STORYMIRROR

DR ARUN KUMAR SHASTRI

Fantasy

4  

DR ARUN KUMAR SHASTRI

Fantasy

त्रिकाल

त्रिकाल

1 min
255

मोहब्बत के नित नए आयाम लिखता हूँ।

कसक लेकर इस जगत को प्यार देता हूँ।


लगा जाता है कोई ठोकर जाने अनजाने में।

तो बिन सोचे उस बशर को मैं माफ करता हूँ।


नहीं पगला नहीं हलकट नहीं कोई फ़रिश्ता हूँ।

पुराने सिसकते जख्मों को बस आराम देता हूँ।


मिरी आदत नहीं किसी से पडूं बहसबाजी में।

कोई आवारा कहता है तो बस इक गहरी सांस लेता हूँ।


किसी के प्यार ने मुझको कभी था प्यार से देखा।

उन्हीं प्यारे पलों को अब में बस प्यार देता हूँ।


मुझे नकारात्मक भावों से अब नफरत सी हो गई।

बिना मुस्काये अब रहना मुझे बहुत तकलीफ देता है।।


नसीबा था मिरे मालिक ने मुझको इंसा बना डाला।

मिरी अब सोच वैसी हो गई मुझे जैसा बना डाला।


मोहब्बत के नित नए आयाम लिखता हूँ।

कसक लेकर इस जगत को प्यार देता हूँ।


लगा जाता है कोई ठोकर जाने अनजाने में।

तो बिन सोचे उस बशर को मैं माफ करता हूँ ।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Fantasy