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Sheel Nigam

Abstract Fantasy

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Sheel Nigam

Abstract Fantasy

तनहाइयाँ अकेली नहीं होतीं

तनहाइयाँ अकेली नहीं होतीं

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तनहाइयाँ अकेली नहीं होतीं,

तनहाइयों में भी साथ होतीं हैं

कुछ परछाइयाँ...उन ख्यालों की,

जो कभी भूले-भटके से,

अँधेरी रातों में,

न जाने कहाँ-कहाँ से निकल कर,

बस जाते हैं मन के हर कोने में,

और फिर छा जाते हैं,   

काले बादलों से, 

बरसते हैं खूब नयनों के झरोखों से


इन नयनों का बरसना राहत देता है

उस चाहत को, जो पैदा हुई थी कभी..

मन में बसाया था जिसे...

दिल के हर कोने में

जाग पड़ती हैं इन तनहाइयों में,

फिर से उस चाहत की परछाइयाँ

भूले-भटके से ये ख्याल,

उनींदी सी यह चाहत, 

बन जाते हैं दो किनारे,

इन तनहाइयों के

और साथ निभाते हैं

हर पल, अंत तक



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