तन्हाई...
तन्हाई...
उन गुज़रे पलों का
हिसाब-ए-एहतराम
क्या करना,
जिन पलों ने छीन लिया
मेरे यादों का सावन!
यहीं से शुरू होकर
यहीं पे खत्म होने को
है मेरी यादों का
सतरंगी मौसम...
कोई आसार
नज़र आता नहीं
इन आहें भरी
इंतहाई तपीश-ओ-तड़प का,
जो यूँ ही
बिन बादल
बरसने को
अमादा हैं
मेरी बोझिल निगाहें...
क्या करूँ,
मेरी धड़कनों को
कोई गिला-शिकवा नहीं...?
देखो, कैसे बेशर्म जान पे
अपनी मोहब्बत
लूटाये जाता है...!