तंगी...
तंगी...
जब जेब खाली हो,
तब असली ज़िन्दगी
नज़र आती है...!
सुनने में बुरा लगता है,
मगर यही हक़ीक़त में
हरेक मुफलिस मजबूरी में
एहसास करता है...!
तड़पता है...!
घुटता जाता है...!
तंगी में
पिसता ही चला जाता है...!!
बस पिसता ही चला जाता है...!!
अक्सर कामयाब लोग
सलाहकार बनकर
किसी मजबूर-लाचार-बेहाल इंसान को
यहाँ-वहाँ की
किताबी बातें तो
यूँ कहता-फिरते हैं,
जैसे कि
वही सबसे बड़ा मददगार है...!
मगर सब दिखावा है...
धोखा है...
बस कहने को
बड़ी-बड़ी बातें हैं...
झूठे वादे हैं...
इरादे मगर अच्छे नहीं हैं --
वो वक्त आने पर
एकाएक मालूम पड़ ही जाता है...!!!
तंगी बहुत बुरा अनुभव है,
जिससे गुज़रकर
अच्छे-अच्छों की
हालत बद-से-बदतर
हो जाती है...।
इसलिए हमें
अपने अच्छे दिनों में
आनेवाले अनजाने कल के लिए
थोड़ा-थोड़ा करके
भविष्यनिधि
संजोकर रखना
बेहतर है,
वरना
तंगी की मार
जब किसी इंसान पर
पड़ती है,
तो वही नहीं,
उसके साथ जुड़े
कई सारे लोगों को भी
तकलीफों का
सामना
करना पड़ता है...
और वो बहुत ही
दुखदायी होता है...!