बुनियाद
बुनियाद
किसी भी संगठन या
संस्था की 'बुनियाद'
तभी कायम रह सकती है,
जब उससे जुड़े लोगों की
'मूलभूत' आवश्यकताओं एवं
सुविधाओं की
सही रूप में
'आपूर्ति' हो,
नहीं तो 'महज' दार्शनिकता को
आगे रखकर
'केवल' त्याग और सेवा की
'चाह' रखकर
या त्याग और सेवा की
'माँग' करते रहने से
उस संगठन या
संस्था से जुड़े लोगों की
हिम्मत टूट जाया करती है
और उन्हें अपने
भविष्य की 'बुनियाद'
हिलती नज़र आतीं हैं।
इसलिए तथाकथित संगठनों अथवा संस्थाओं के कर्णधार
उनके 'मार्गदर्शन' पर काम करनेवाले लोगों की जीवनदशा पर
तनिक सदिच्छा सहित ध्यान दें !
अन्यथा 'विकास' की
ध्येयमार्ग पर बस
अनिश्चितता की
'कंटकाकीर्ण' परिस्थितियाँ ही
बाधक बनकर
रास्ता रोक लेंगी...।