बड़े लोगों की बड़ी-बड़ी बातें...!!!
बड़े लोगों की बड़ी-बड़ी बातें...!!!
वो आलिशान मकानों में रहते,
वो अपनी लंबी-लंबी
बेशक़ीमती गाड़ियों में
सफर करते-फिरते...
वो यूँ ही मेल-मिलाप और
औपचारिक बैठक करते-फिरते...
वो माइक्रोफोन पर
बड़ी-बड़ी बातें करते...
वो अनगिनत झूठे दावे करते...
फिर अपना
मतलब निकल जाने पर
अपने रास्ते
निकल पड़ते...
वो यूँ ही
भाषणबाजी करते...
श्रोताओं को
आसमानी ख्वाब दिखाते...
(फिर आसमां में
शक़ के बादल मंडराते!)
वो 'पहुंचे हुए'
लोग हैं निराले...
सिर्फ अपना
भविष्य सुरक्षित करते...
(दूसरों को बेहिसाब
दर्द-ओ-ग़म देते!)
वो खुशमिजाज
लोग हैं निराले!
बड़े-बड़े होटलों में
अपने परिवार के साथ
चैन से खाना खाते...
आनलाईन पेमेन्ट करके
अपना रुतबा दिल खाते...
शान-ओ-शौकत की
बेशुमार दौलत जुटाते...
हंसते-खेलते
बेफिक्री में
ऐश-ओ-आराम की
ज़िंदगी बिताते...
वो बड़े एहतियात से
बैंकों के अनगिनत खातों में
बेहिसाब जमापूंजी रखते...
वो अक्सर बेचैनी से
कई मरतबा हिसाब कर-करके
नहीं थकते...
उनकी ज़िंदगी में तो
चार चाँद लग ही जाते हैं,
मगर हम जैसे लाचार
मुफलिसी-ए-मजबूरी में
भग्नावशेष-सम एक कमरेवाली
झोपड़ी में ही गुज़रबसर करते...
हम हर सुबह
एक नया ख्वाब
देखने का गुनाह
करते...
और हर शाम
अपने टूटे ख्वाबों के
शीशे जैसे टुकड़ों को
बड़ी मुश्किलों से
समेटने की बेकार कोशिशों में
अपना कीमती वक्त
ज़ाया करते...!
ये फर्क बड़ा गहरा है...!!!
ऊँचे ओहदों पर बैठे हुए
कलम चलाकर हम जैसे
ईमानदार लोगों की किस्मत का
फैसला करनेवाले तथाकथित
'पहुँचे हुए' बड़े लोगों की
हर बात ही निराली है...!!
यहाँ इस कलयुगी
कुरुक्षेत्र-सम जीवनदशा की
दुर्दशा करनेवाले 'बडे़ लोगों की
बड़ी-बड़ी बातों की'
क्या वास्तविकता है
ये तो मेरे गुज़रे हुए
'समर-सम' वक्त ने
मुझे भलीभाँति
समझा दिया...
इसमें तनिक भी
शक़ नहीं...!!!
इसलिए मैं आजकल
बेपरवाही में
अपने 'मन की नाव'
चलाया करता हूँ...!!
वक्त की धारा
किस 'विपरीत दिशा' में
एकाएक प्रवाहमान हो,
इस बात की मुझे
कतई फिक्र नहीं !!
न तो मेरी कोई इल्तिज़ा है,
और न ही किसी की
सिफारिश की उम्मीद रखता हूँ !!
मैं जैसा भी हूँ --उपरवाले की मर्ज़ी से हूँ...
और मैं हमेशा यही दुआ करता हूँ
कि मैं किसी भी सूरत-ए-हाल में
बेईमानी के आगे अपना सर न झुकाऊँ...
नाइंसाफी के आगे कभी अपने घुटने न टेकूँ...!!!
ये दुनिया है झूठी माया...
झूठे हैं उनके वादे...
और फरेब भरी हैं उनके 'खोखले' दावे...!!!
सबको बेशक़ मालूम है
उनके 'असल इरादे' !!
वो तो आदतन मजबूर हैं
बड़ी-बड़ी बातों के पुल बनाने को...
ये कलम की ताक़त बेशक़
ज़ुबानी तलवार से भी
कई मायनों में ज़्यादा असरदार है ।
आज कलम ही मेरा एकमात्र शस्त्र है --
इसकी धार से हैं मैं
हरेक नाइंसाफी के खिलाफ
अपनी आवाज़ बुलंद करूंगा...!!!
हाँ, मैं कलयुग का अर्जुन हूँ !
भगवान श्री कृष्ण की
गीता को अपने दिल में बसाकर
हरेक अन्याय के विरुद्ध
अपनी आवाज़ बुलंद करता रहूँगा...!!!
शायद वो वक्त के 'बेरहम' सितमगर
मेरी आवाज़ को तवज्जोह ही न दे,
मगर फिर भी मैं अपनी
ज़िद पे अड़ा हूँ...अड़ा रहूँगा...
और एक कदम भी पीछे नहीं हटूँगा...!!!
चाहे कल मेरा वजूद भी न रहे,
मगर एक चेतावनी उन्हें भी देता हूँ -
"सौ सुनार की : एक लोहार की...!!!"
(ये तो आनेवाले वक्त का
अर्धलिखित दस्तावेज है,
जिसे ऊपरवाले की भरी दरबार में
ज़रूर इंसाफ मिलेगा...!!!
मैं उस वक्त का
बेसब्री से इंतज़ार करूँगा...)