तलाश..!
तलाश..!
जिसको मै तलाशती रही वर्ष दर वर्ष
कभी झील / नदी / समंदर /
कभी पर्वत/चट्टान
धरती / आकाश/ पाताल / हवा / पानी
विराने से लेकर बहारों तक से पूछा पता
हँसी / ख़ुशी / ग़म सब में तलाशा जिसे
वो तुम ही थे क्या ..?
कब कहाँ से आ गए
राख में छिपी चिंगारी को हवा देने
और अब जब कि...
आग से बचने की सलाह देने आये हो..!
संभव है क्या...?
आग लेकर चलना और आग से बच जाना
राख समेटना और चिंगारी से दूरी बनाना..!
ये सब उस तलाश का हिस्सा ही तो है ना..!!