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Surendra kumar singh

Abstract

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Surendra kumar singh

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तितलियों की तरह

तितलियों की तरह

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ये तितलियों की तरह

उड़ते हुये उदासी के बादल

आखिर कहाँ जायेंगे

फूल सी खिली नफरत

मुरझा रही है

आदमी प्रेम की

तरफ लौटने लगे हैं

विश्वास मुस्करा रहा है

उम्मीद आदमी की तरह

आदमी के गले लग रही है

इस पल को भी

संभालने का हुनर सीखना पड़ता है

आखिर ये उल्लासमय परिवेश भी तो

एक खूबसूरत सा तनाव है

और तनाव तो आप जानते हैं न

देशों के बीच से

आदमी और आदमी के बीच तक

ठहरा हुआ था

जाने कब से।


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