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ARVIND KUMAR SINGH

Abstract

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ARVIND KUMAR SINGH

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तितली बन आ जाओ

तितली बन आ जाओ

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मेरे अरमानों के आंगन में

अनोखी बहार सी छाई है

खुशबू तेरे यौवन की जब

संदेशा प्यार का लाई है


मेरे दिल की बगिया में तुम

तितली बन कर आ जाओ

बहके कदमों से झूम उठो

मकरंद प्यार का खा जाओ


मेरे प्यार में खुशबू अपने 

यौवन की मिला जाओ

चाहत कली सी है जो मेरी

फूल सी इसे खिला जाओ


मेरे उन्मादों को कर काबू

मुझ पर रौब जमा जाओ

आंचल फैलाओ पंखों का 

मेरी हस्ती पर छा जाओ


भाग सको न दिल से मेरे

ऐसे मुझमें समा जाओ

भुला के दुनियादारी सब

आलिंगन में समा जाओ।


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