आओ फिर आदर्शवादी स्वरूप की श्रृंखला से जुड़ जाएं, लौकाचारी निर्मित करके एक नई कहान आओ फिर आदर्शवादी स्वरूप की श्रृंखला से जुड़ जाएं, लौकाचारी निर्मित करके...
दर्द ज़िंदगी के कुछ इस कदर बढ़ गए कभी गीत तो कभी गजल बन गए जब से निकाल फेंका आप ने दि दर्द ज़िंदगी के कुछ इस कदर बढ़ गए कभी गीत तो कभी गजल बन गए जब से निकाल फें...
तू जननी है अबला ना बन, नारी तुझसे सृष्टि है नारी तुझमें। तू जननी है अबला ना बन, नारी तुझसे सृष्टि है नारी तुझमें।
बन जाती हूँ । बन जाती हूँ ।
मेरे अरमानों के आंगन में अनोखी बहार सी छाई है। मेरे अरमानों के आंगन में अनोखी बहार सी छाई है।
शायद यही लिखा था और नियति को यही मंजूर था, वरना प्रशासन और राजनीति में रुचि रखने वाल शायद यही लिखा था और नियति को यही मंजूर था, वरना प्रशासन और राजनीति में ...