नारी
नारी
हाहाकार
प्रचंड
प्रलय,
नवनव रूपों की रेखा,
शक्ति की जो स्वरूपा,
खण्ड खण्ड स्मित छाया
नारी
हाय चकित !
मैं सोच रही
क्या
नारी तुम केवल श्रधा बन
संवरोगी,
सहोगी,
त्यागी बन पिसती जाओगी?
या खंडित कर इस पाखण्ड
विचारों को
खुद को स्वतंत्र कर दोगी?
अपने चरित्र की पवित्रता की
अग्नि परीक्षा ही दोगी
कब तक?
अपने में कौशल भर
उड़ान भरो
तुम पंक्षी सा,
तू किसलय की बूंद ना बन,
द्रौपदी सी कारण पुकार ना कर,
काली बन मुश्टी प्रहार कर,
खण्ड खण्ड भुज शीश औ धड़
दृष्टी जहाँ कुदृष्टि बने,
तू जननी है
अबला ना बन,
नारी तुझसे सृष्टि है
नारी तुझमें।