तिमिर
तिमिर
तेरे दामन में
मैं उजाला खोजता हूँ।
तुम से निकल जाऊँ
कई बार सोचता हूँ।
पर उजाले मे भी
तू मेरे साथ होती है।
एक सच्चे मित्र की तरह
तू सब कुछ खोती है।
कभी मैं रौंदता हूँ
तुम्हें अपने ही पैरों से।
जब भी मैं तुलना
करता हूँ गैरों से ।
तुम सा कोई अपना नहीं।
जो मुझ को समेट ले
अपने आंचल में कहीं।