तिकड़म की कुण्डलियाँ !
तिकड़म की कुण्डलियाँ !
1
'तिकड़म' करे ना चाकरी ,
ना ही करते काम।
उनके दादा कह चुके ,
सबके दाता राम।।
सबके दाता राम ,
करें क्यों कोई धंधा ?
लूट मची चहुंओर ,
सचाई हाट है मंदा।।
कह 'तिकड़म' कविराय ,
छांह ऐसे की गहिये।
भरा रहे घर - बार ,
सदा हंसते ही रहिये।।
2
तनिक देर रुक लो मेरे भाई ले लो थोड़ा दम ,
हम भी बहुत बुरे नहीं कह बैठे ' तिकड़म।'
काहे को सब भागते , करते हैं गठजोड़ ,
सुबह -शाम पिल बैठते रुपया-पैसा जोड़।।
कुछ भी साथ नहीं जाना, फिर काहे का गम ,
नशा चढ़ेगा एक सा , व्हिस्की हो या रम।।
