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Prafulla Kumar Tripathi

Abstract

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Prafulla Kumar Tripathi

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तिकड़म की कुण्डलियाँ !

तिकड़म की कुण्डलियाँ !

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1

'तिकड़म' करे ना चाकरी ,

 ना ही करते काम।

उनके दादा कह चुके ,

सबके दाता राम।।


सबके दाता राम ,

करें क्यों कोई धंधा ?

लूट मची चहुंओर ,

सचाई हाट है मंदा।।


कह 'तिकड़म' कविराय ,

छांह ऐसे की गहिये।

भरा रहे घर - बार ,

सदा हंसते ही रहिये।।


2

तनिक देर रुक लो मेरे भाई ले लो थोड़ा दम ,

हम भी बहुत बुरे नहीं कह बैठे ' तिकड़म।'

काहे को सब भागते , करते हैं गठजोड़ ,

सुबह -शाम पिल बैठते रुपया-पैसा जोड़।।

कुछ भी साथ नहीं जाना, फिर काहे का गम ,

नशा चढ़ेगा एक सा , व्हिस्की हो या रम।।



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