तीस मार खाँ
तीस मार खाँ
अपनी रूह मान चुके थे जिन्हें हम कभी,
वो तो फक़त जिस्म के ताबेदार ही निकले।
भगवान ही समझ लिया जिन्हें हमने,
इंसान की शख़्सियत के भी काबिल न निकले।
ज़िन्दगी समझ लिया था जिन्हें हमने,
हमारी ही मौत का सामान बन साथ ही चल निकले।
खुद को बड़ा तीस मार खाँ समझा था हमने,
लेकिन हम तो दुनियादारी में भी शामिल न निकले।
