थोड़ी सी धूप
थोड़ी सी धूप
थोड़ी सी धूप, परावर्तित होकर
सामने की चमकीली दिवार से
आती है मेरे भी घर में
लेकिन सुबह उसके रोशनी से
आँख नहीं खुलती
घर में अँधेरा ही होता है
पौधे धूप खाते हैं लेकिन शायद
इस फिल्टर्ड धूप में वो विटामिन नहीं
जिसे खाके मेरा मनीप्लांट जिन्दा रह सके
लगाता हूँ सुख जाता है
कौवे की काँव-काँव
सुबह शाम नहीं होती
यहाँ वो पेड़ नहीं, पोखर नहीं
गीली मिटटी नहीं
खेत नहीं दाने नहीं
जिसको खाके पीके
वो कौवे जीते थे गाँव में