थमना ही था
थमना ही था
आधुनिकता की रफ्तार में
कुदरत को पीछे धकेल चले थे
......तो थमना ही था
खुद को खुदा समझने की होड़ में
वजूद क़ुदरत का मिटाने चले थे
......तो थमना ही था
ममतामयी सरिता थी मंद-मंद बहाव में
रोड़े पत्थर डाल के मुख मोड़ने चले थे
......तो थमना ही था
निर्मल झरने गाते थे राग मल्हार में
तोड़ के पर्वत ,गाड़ने इमारत चले थे
......तो थमना ही था
झूमती थी प्रकृति शीतल फिजाओं में
और ये विष हवाओं में घोलने चले थे
......तो थमना ही था ।