तहखाने
तहखाने
पसंद नहीं है मुझे तहखाने
चाहे वह घर में हो या मन में।
घर के तहखाने में पड़ी थी पुरानी सी अलमारियां
पुरानी किताबें और टूटी फूटी कलमें।
मन के तहखाने में भी भरी थी खट्टी मीठी पुरानी यादें
और कुछ टूटे हुए से सपने।
आज यूँ ही घर के तहखाने में जाना हुआ
तो पाया वह पुरानी अलमारियां भी कितनी कीमती थी
हर कलम स्याही खत्म होने तक जरूरी थी।
हर रखी हुई किताब को पढ़ना भी मजबूरी थी।
यूं ही घर सुंदर बनता गया और पुराना सामान
तहखाने में ही सजता रहा।
घर के तहखाने ने मन के तहखाने को भी खोल दिया।
कुछ पुरानी यादें, कुछ टूटे सपने, अपनों से खाए धोखों ने मन को फिर से झिंझोड़ दिया।
अब तक इस शरीर ने भी अपने बचपन और जवानी को छोड़ दिया।
उम्र के इस पड़ाव में तहखाना साफ होना मुश्किल है।
हर चीज पर पड़ी धूल को साफ करवाना भी तो मुश्किल है।
कोई साफ करें तो करें, ना तो ना, यह सोच कर हम तो तहखाने से बाहर ही आ गए।
मन के तहखाने को भी करा बंद, समेटा पुरानी यादों को
खुद की और औरों की गलतियों को भी माफ किया।
तहखाने से बाहर आकर परमात्मा की गोद में आराम किया
सब भूलकर हम मुस्कुराए और फिर ना किसी अपने और ना किसी बेगाने को ही याद किया।
