तेज़ाब
तेज़ाब
सुना है वो तेज़ाब नहीं, प्यार था तुम्हारा,
जिससे जल गया, सारा जीवन हमारा।
मान लेती हूँ गलती अपनी, न देख पाई
प्यार तुम्हारा,
क्या अब तुम स्वीकार करोगे,
साथ दोगे हमारा ?
देख लो अब तुम, खड़ा है मंझधार में
अकेला प्यार तुम्हारा,
छीन लिया मेरा यौवन, मेरा मन-दर्पण,
अब तो बहुत खुश होगा, मन तुम्हारा।
सुना है वो तेज़ाब नहीं, प्यार था तुम्हारा
जिससे जल गया, सारा जीवन हमारा।
बहुत गौरवान्वित महसूस किया होगा,
जब जल रहा था, तन-मन हमारा,
सोचा होगा, जो हासिल न हो पाया
कैसा प्यार हमारा,
कैसे मैं तुम को प्यार की परिभाषा
समझाऊँ,
है यही प्यार, तो न मैं कभी किसी
का प्यार पाऊँ।
सुना है वो तेज़ाब नहीं, प्यार था तुम्हारा
जिससे जल गया, सारा जीवन हमारा।
डूब चुका है मेरी ख़ुशियों का सवेरा,
छा गया जीवन में घनघोर अँधेरा,
मान लो, भूल चुकी हूँ अब मैं जो
किया तुमने साथ हमारे,
क्या अब तुम बन सकते हो
तारण-हार हमारे?
तुम कहाँ किसी के तारण-हार
बन पाओगे,
शैतान हो तुम, इंसान कहाँ बन जाओगे।
सुना है वो तेज़ाब नहीं, प्यार था तुम्हारा,
जिससे जल गया, सारा जीवन हमारा।
दर्द मेरा तुम भी ज़रुर समझते,
अगर होती मैं बेटी तुम्हारी,
मैं तो यह भी नहीं कह सकती कि,
दशा ऐसी ही हो बेटी की तुम्हारी।
सुना है वो तेज़ाब नहीं, प्यार था तुम्हारा
जिससे जल गया, सारा जीवन हमारा।
