STORYMIRROR

विकास उपमन्यु

Abstract

3  

विकास उपमन्यु

Abstract

हाँ मैं मजदूर हूँ

हाँ मैं मजदूर हूँ

1 min
296

हाँ मैं मजदूर हूँ,

जलती धूप में,

तपती राह हूँ,

नहीं मेरा कोई विकल्प,


मैं तो कोहीनूर हूँ,

खुला गगन अम्बर मेरा

सुनता हमेशा प्रेम धुन हूँ,

हाँ मैं मजदूर हूँ।

 

धरती चीर कर सींचता जल हूँ,

सर्दी में निकली धुंधली धूप हूँ,

आग में तपता कुंदन हूँ,

सह चुका जो इस दुनिया के सदमे,

देखो आज मैं कितना मजबूर हूँ।

 

करता हूँ मेहनत

एक जीने की चाह में,

साधन नहीं है कोई लेकिन

पेट भरने को मजबूर हूँ,


समृद्धि हो मेरे देश की,

मैं तो इसी में ग़मगीन हूँ,

श्रम ही है मेरी पहचान,

मैं श्रमिक मशहूर हूँ,

हाँ मैं मजदूर हूँ।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract