STORYMIRROR

विकास उपमन्यु

Abstract

4  

विकास उपमन्यु

Abstract

धरा की पुकार

धरा की पुकार

1 min
506

रो रही धरा, कर रही बस एक पुकार

चारों ओर बवंडर, फैला है हाहाकार

बचा लो वृक्षों को,

नहीं होगा जीवन का दोहार


हरा-भरा जीवन जों पाना है,

कम से कम एक वृक्ष अवस्य लगाना है

मत काटो इनको वेवजह,

अपने हाथो कव्रिस्तान क्यों बनाना है


ईश्वरीय वरदान है, वृक्ष ये गुणकारी

खिलते है फूल, तो निकले सुगंध न्यारी

सहते तपती धुप, देते हवा सुहानी

कर लो इनका संरक्षण, जों हो जान प्यारी


इसकी ठंडी छाया में,

सावन के झूले हमने झूले है

महत्वता अलोकिक है वृक्षों की,

क्यों ये जग भूले है


कह रहा “उपमन्यु” अब सब से,

काट वृक्षों को मनुष्य ही जहर घोले हैं

है जीवन का आधार वृक्ष,

ये सब वैज्ञानिक बोले हैं।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract