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विकास उपमन्यु

Abstract

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विकास उपमन्यु

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पत्नी

पत्नी

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देखो वो आज कैसे पत्नी बन आई,

छोड़ बाबुल का अंगना कैसे गई सजाई।

पता नहीं किस को किसने पाला,

फिर भी देखो कैसा इनका साथ निराला।

 

छोड़ दिया उसने अपना बचपन

बाबुल के गलियारों में,

ले आई यौवन की बेला

तुम्हारे अँगियारों में,

तुम देना साथ हमेशा उसका,

जीवन के उजियारों में।

 

देखो कैसा ये खेल निराला है,

एक अजनबी आज उसका

सब कुछ होने वाला है,

नहीं जानती कुछ भी

फिर भी कोई अपना बनने वाला है।

 

न जाने क्यों लगता है

आज उसकी आँखें नम हैं,

उसको कहीं न कहीं

अपने बाबुल से जुदा होने का गम है।

 

सजा है उसके माथे पर कुमकुम

जो अब पहचान ‘उपमन्यु’ तुम्हारी है,

है वो तुम्हारे सुख-दुःख की साझी,

जीवन साथी अब वो तुम्हारी है



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