तेरी उम्मीद तेरा इंतजार जब से है।
तेरी उम्मीद तेरा इंतजार जब से है।


फैज़ अहमद फैज़(तरही गज़ल)
तेरी उम्मीद तेरा इंतजार जब से है।
निगाहों में इज़हारे प्यार तब से है।।
गिला न कोई मिट्टी के मानव से
उम्मीद तो हमें हर वक्त रब से है।
कभी देखा था पेड़ की शाख हिलते
हवाओं में असर तुम्हारा कब से है।
चले जाओगे यूँ बिन बुलाये सनम,
शिकायत तो सिले हुये लब से है।
कहीं खो गया है दिल ढूँढूँ किधर,
फिजाओं में घुला ज़हर जब से है।
है वक्त का तकाजा संभल' पूर्णिमा'
खुमारी चढ़ी चाँद पर शब से है।।