तेरी घरनी की आस
तेरी घरनी की आस
सुन बादल ले जा सन्देशा निर्मम प्रिय के पास
कहना अब तक मरी नहीं तेरी घरनी की आस।
आयत नयन किया करते हैं
अब भी नभ से होड़
जब तब ग़म की बदली घिरके
देती है जल छोड़।
निशि दिन नयन बरसते फिर भी बुझे न मन की प्यास
मरती देह नहीं मरती पर कभी मिलन की आस।
उमड़ उमड़ कर नदिया बहती
मिलती जल की धार
मधुर मिलन की आस लिये मन
तुझको रहा पुकार।
तुझ बिन व्याकुल रोम रोम मन पंछी बहुत उदास
मरती देह नहीं मरती पर कभी मिलन की आस।
उमड़ घुमड़ घन घिरे गगन में
किन्तु न बरसे नीर,
तरस रहे प्राणी सब जल बिन
बरस बरस बेपीर।
बूँद बूँद हित तरसे धरती अब मत करो निराश
मरती देह नहीं मरती पर कभी मिलन की आस।