तेरी बातूनी निगाहें
तेरी बातूनी निगाहें
बड़ी ही नर्मी से
स्पर्शती है
तुम्हारी निगाहें मुझे
कि गुदगुदा जाती है
दिल की ज़मीं
हौले से दस्तक देती है
मन की दहलीज़ पर
बजने लगती है सारंगी
मंद-मंद मुस्कुराती है
हम हया के मारे
मर जाते हैं
ये तीर चलाए जाती है
हम सुध-बुध खोए जाते है
पलकें हम कैसे उठाते कहो
ये सीधे वार जो करती है
तेरी चंचल चोर बातूनी अँखियाँ
काबू में रखो बड़ी तूफ़ानी है
न जाम कोई कभी तूने पीया
क्यूँ इतना नशा बरसाती है
बस एक नज़र कोई देखे इसे
समूचा बहा ले जाती है।
