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Bhavna Thaker

Abstract

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Bhavna Thaker

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तेरी बातूनी निगाहें

तेरी बातूनी निगाहें

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बड़ी ही नर्मी से

स्पर्शती है 

तुम्हारी निगाहें मुझे 

कि गुदगुदा जाती है 

दिल की ज़मीं 

हौले से दस्तक देती है 


मन की दहलीज़ पर 

बजने लगती है सारंगी 

मंद-मंद मुस्कुराती है 

हम हया के मारे 

मर जाते हैं 


ये तीर चलाए जाती है 

हम सुध-बुध खोए जाते है

पलकें हम कैसे उठाते कहो

ये सीधे वार जो करती है


तेरी चंचल चोर बातूनी अँखियाँ 

काबू में रखो बड़ी तूफ़ानी है 

न जाम कोई कभी तूने पीया 

क्यूँ इतना नशा बरसाती है


बस एक नज़र कोई देखे इसे

समूचा बहा ले जाती है।


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