तेरे इंतज़ार में
तेरे इंतज़ार में
बेवफाई का बोझ कैसे उठा लेते हो?
हम तो वफ़ा की बोझ तले ही दबते रहे
सुनकर आवाज़ मेरी तुमने रस्ता बदल लिया
और हम तुम्हारे लिए खुद को बदलते रहे
कोई टोह ले लेते मेरे हालातों का
यूं ही सर-ए-राह हम भटकते रहें
अपने गुरूर में हमें रुसवा किया
हम खुद गिरे,खुद ही संभलते रहे
इस इंतज़ार में कि मुझको पुकारोगे तुम
हम अब तलक राह तुम्हारी तकते रहे
कभी पूछोगे सबब मेरी रंजीदगी का
अपने अश्कों को छुपाकर सिसकते रहे।