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Manoj Kumar

Romance Thriller

4  

Manoj Kumar

Romance Thriller

तेरे हाथों की मेंहदी

तेरे हाथों की मेंहदी

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कितनी चटक थी

बिखरी थी रोशनी चेहरा पर,

प्यार का...!

चेहरा गोल मटोल

चमक दमक !


आज तो वो मेंहदी भी,

फीकी पड़ गई...!

ओर रोशनी तो पता नहीं..

तेरे चेहरा का...!


कैसी जवानी थी उस समय

ओर अब...!

लगता हैं मुझे

तू अपने श्रृंगार में डूबी नहीं थी

जो इस घड़ी,

हालत ऐसी हैं


कहाँ गई वो लकीर मेंहदी की

ओर उसकी चमक

कहाँ गई तेरी शुर्खियाँ 

ओर वो होंठो की मुस्कान

आज मुझे तो फीके दिख रहे हैं


मनोज भी सोचता होगा

क्यूँ अपने श्रृंगार में ढली जैसी,

दिखती नहीं हैं।

ओर मेंहदी की तो रंग न पूछो


उमर गई तो...

मेंहदी गई..!

समय आता नहीं हैं।

बदलाव होता हैं।

ओर तेरी मेंहदी,

वो भी बदल गई...!


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