तेरा इंतज़ार
तेरा इंतज़ार
रात भर तलाश थी,
एक अहसास की I
बादल बरसते रहे,
तलब थी लेकिन प्यास की I
दामिनी गिरी यहाँ -वहां ,
मैं खुली आकाश थी I
शीत -सी लहर-लहर,
मगर हरारत भरी वो रात थी I
चाँद जैसे था छुप गया,
और चांदनी बदहवास थी I
तुम थे रूठे उधर ,
सुलह की ना आस थी I
वीरान थी डगर - डगर,
चाह थी तेरी मगर I
थक कर अब चूर हूँ,
नींद की आगोश में I
सवेरा होने को है ,
लेकिन, तेरी आहट की
अब भी आस थी I
-- रंधीर जांगड़ा

